काला पानी
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म़ें आभागिन,
सीने पर मेरी स्थित है
यादगार यह कारागृह
कराल ह्स्त फैलाए
I
तिमिर अँधियारी से घेरे काली सी शिला स्तम्भ
कराल यह भवन,
मेरे आँचल के दाग बने ख़ड़े है I
आए थे
कितने दावेदार आज़ादी के
मोह
जलाकर दिल के
दहन हुए
थे निराहार,निराधार I
न हुए थे
वे दुर्बल , न थे वे निर्बल
भुखसे व
प्यास से ;
पर अटल
थी चाह उनकी , प्रबल थे मोह उनके
जननी को
सदा पुकारते
आशाओं का
तर्पण किए , शाहीद हुए थे यहाँ
I
कितनी भगिनियों की उज़ड गई राखियाँ ,
फूट गई यहाँ अनेक भावानियों की चूडियाँ ;
बुझाई गई
थीं अनेक गृहों की दीपशिखाएँ ,
खाली चोलियाँ ले पागल फिरी थी असंख्य माताएँ I
सिंची हुई थी रक्त से चितवन मेरी लालिमा
फैली थी ;
मुखरित थे पल-पल दीन क्रंदन से यह स्थान I
घोर फरमान जब
फरमाए जालिम
अंग्रेज़ोंने
टूटी
गिरी थी अरमान मेरे जवान सपूतों की I
क्षुब्ध जलधि
से घेरे हुए, फिर भी
विकल
सूखे दुआओं से रूखी पड़ी है मेरी मिट्टी I
सिहर
उठती हूँ में हर सुबह जब प्राची
मे आती अरुणाई ,
कोयलियाँ
शोकराग ही सुनातीं I
सुनती
हूँ आज भी ट्पक ट्पक बूटों की घोष ;
है फीकी
सी दीन क्रंदन की एहसास हर पल I
है जलती मांस की दुर्गन्ध
मेरी सांसों मे ;
शूल कंटक
बंर आस्थी के टुकड़े मेरे पगराहों मे
I
कॉन आवे
मेरी क्रोध बांधने,कॉंन मेरी टाप ताड़ें ,
कॉंन आवे
मेरी शोक झाड़ने ,कॉंन मोड दें ए दुर्गति ?
विषैला
मेरा आसमान ,मैला सा मेरा चरित्र ;
कलंकित
हूँ, लज्जित हूँम़ें अपमान झेलकर I
वंचित रह
जाती हूँ म़ें सृजन
सपनों से ;
न जाने
बुगात रही हूँ कैसी पीड़ा, बरसों से I
नहीं
मिलेगी मुक्ति मुझे में शाप-ग्रस्त, बनी हूँ
इक काली
बिंन्दी इतिहास के पन्नों पर I
@
------- GEETHA RAVINDRAN--------
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